Thursday, October 13, 2011

छात्र बनाम अनुशासनहीनता.....

      छोटी कछाओं में मुझे सिखाया गया था की प्रत्येक निबंध की शुरुआत परिभाषा से करनी चाहिए; जैसे गाय का निबंध लिखना हो तो शुरू इस सवाल से करना चाहिए कि गाय किस चिड़िया का नाम है ? उसी तरह इस छोटे से निबंध की शुरुआत इस सवाल से हो सकती है कि छात्रों कि अनुशासनहीनता है क्या चीज़ ?

      इतना तय है कि क्लास में न आना, फीस न देना, अध्यापकों से अबे-तबे करना, किताबों को कभी न देखना, सहपाठिनी छात्राओं को लगातार देखते रहना, ऊलज़लूल कपडे पहनना, उससे भी ज्यादा उलज़लूल बोली बोलना - यह सब अनुशासनहीनता नहीं है; यह सब तो बिंदास मोडर्न ट्रेंड है; कम-से-कम इन्हें लेकर छात्रों को अनुशासनहीन नहीं कहा जा सकता ! वैसे ही, दारू पीकर झगडा करना, रेल में बिना टिकट चलना, रेड लाइट पे भी न रुकना, जिस फिल्म को देखकर आना खुद को उसी फिल्म का हीरो समझना, राह चलती बालाओं को अपनी हिरोइन समझना - यह सब भी अनुशासनहीनता में नहीं आता ! दरअसल, अगर कल के गुजरात और आज के बिहार कि हालत पर गौर करें तो स्पष्ट हो जाएगा कि छात्रों की अनुशासनहीनता सिर्फ सड़क पर जुलूस निकालने, हड़ताल करने, बसें जलाने, गोली खाने, जेल जाने, यानी सौ बात की एक बात - पालिटिक्स भिड़ाने में है !

      सवाल यह है : इस समय यानी जब अन्ना हजारे सभी का सर्वोदय कर रहे हैं, छात्रों कि इस अनुशासनहीनता को रोका कैसे जाए ?

      अनुशासनहीनता का उपर्युक्त अर्थ जान लेने के बाद उसका हल आसानी से निकाला जा सकता है ! सबसे सीधा रास्ता तो ये है कि पालिटिक्स ही ख़त्म कर दी जाए - न रहे बांस, न बजे बांसुरी ! पर पालिटिक्स ख़त्म हो जाने से ग्राम स्तर से अखिल भारतीय स्तर तक के लाखों राजनीतिक नेता बेकार हो जाएंगे और इतना बड़ा 'ले-आफ' होने से बेरोज़गारी कि समस्या और भी विकराल हो जाएगी ! इसलिए पालिटिक्स अच्छी हो या बुरी, बेरोज़गारी को दूर रखने के लिए पालिटिक्स को कायम रखना ही पड़ेगा !

      दूसरा उपाय यह है कि स्कूलों, कालेजों, और विश्वविद्यालयों को ख़त्म कर दिया जाए ! न रहे छात्र और न रहे उनकी अनुशासनहीनता ! पर इससे भी यह नुकसान होगा कि लाखों अध्यापक बेरोजगार हो जाएंगे ! आज की शिछा-संस्थाएं छात्रों के लिए भले ही बेकार हों, अध्यापकों की रोज़ी के लिए उनका कायम रहना लाज़मी है !

      तीसरा उपाय यह है कि कालेज ख़त्म न हो सकें तो छात्रों कि परीछाएं ख़त्म कर दी जायें, क्योंकि 'इंकलाब जिंदाबाद' के नारों कि शुरुआत अब प्रायः परीछा-कछ से ही होती है ! पर परचा बनाने वालों, परीछा के निरीछकों, अधीछकों, पर्यवेछकों, और कॉपी जांचने वालों, नंबर जोड़ने वालों, जोड़ कि चेकिंग करने वालों, यानी परीछा से पैसा पैदा करने वालों कि संख्या भी लाखों में है और अगर परीछाएं ख़त्म हो गईं तो उनकी जीविका का एक साधन भी ख़त्म हो जाएगा; यानी आज कि परीछाएं छात्रों के लिए भले ही बेकार हों, मास्टरों के लिए बड़े ही काम क़ी हैं !

      तब सवाल उठता है कि पालिटिक्स को मिटाए बिना, शिछा-संस्थाओं को मिटाए बिना, परीछाओं को मिटाए बिना छात्रों की अनुशासनहीनता कैसे मिटाई जा सकती है ? 

     फ़ॉर्मूले की तरह, निम्नलिखित नुस्खों की आजमाइश की जानी चाहिए :

     (१). राजनीति के दलदल में वह खुद बेशक लोट रहा हो, पर प्रत्येक राजनीतिक नेता बार-बार यही चीखता रहे कि छात्रों को राजनीति से दूर रहना चाहिए !

     (२) सामाजिक जीवन कि गुत्थियों और देश कि समकालीन समस्याओं के साहित्य पर रोक लगा दी जानी चाहिए ! उसकी जगह 'यूथ टाइम्स', 'माधुरी', 'फेमिना' 'फिल्मफेअर', 'कांफिडेंशिअल एडवाईजर' जैसी पत्र-पत्रिकाओं को रियायती दरों पर छात्रों में बेंचा जाए और स्कूल-कालेजों में मुफ्त बंटवाया जाए !

     (३) 'आरक्षण', 'स्वदेश', 'गाँधी' ...जैसी फिल्मों को प्रतिबंधित कर के 'गर्म हवा' 'डेल्ही-बेल्ली', ...जैसी फिल्मों को कलात्मक घोषित किया जाए, उन्हें मनोरंजन कर से मुक्त किया जाए और प्रोडूसरों तथा डायरेक्टरों में गन्दी फिल्मे बनाने की वार्षिक प्रतियोगिता चलाई जाए !

     (४) किताबें बहुत महँगी हों और शराब बहुत सस्ती हो ! नशीली दवाओं का खुले-आम गुप्त प्रचार किया जाए!

     (५) विश्वविद्यालय में प्रजातंत्र के सिधांत, घाटे की अर्थव्यवस्था, मुद्रास्फीति आदि विषयों को छोड़ कर बराबर ऐसे सेमिनार होते रहे जिनका विषय हो 'सिनेमा में चुम्बन दिखाया जाए या नहीं' अथवा 'पत्नी के साथ एक प्रेयसी रखना तंदुरुस्ती के लिए लाभकर है या हानिकारक ?

      (६) फिल्मों और विज्ञापनों के मार्फ़त बड़े-बड़े बालों, उलटे-सीधे फैशनों, बेहूदा तौर-तरीकों को प्रोत्साहित किया जाए !

      (७) होटलों, मिठाई की दुकानों, कहवाघरों और शराबखानों पर उन्हें निरंतर उधार लेने की सुविधा दी जाती रहे !

      (८) बुधजीवियों, सीनिअर प्रोफेसरों, वैज्ञानिकों के अलावा सेक्स-बम राखी सावंत, करीना कपूर, कटरीना कैफ या रणबीर कपूर, इमरान खान और शाहरुख़ खान जैसे अभिनेताओं को विश्वविद्यालयों के वाइस चांसलर बनाने का मौका दिया जाए !

     (९) संछेप में, छात्र अपनी आधे से ज्यादा उम्र सिर्फ ऊलज़लूल ढंग से बाल बढ़ाने, ऊलज़लूल फिल्में देखने, बेहूदा पत्रिकाएँ पढ़ने, एक-दूसरे पर खीझने, चीखने-चिल्लाने, गुर्राने, सस्ता नशा करने और हर जगह से अपने को बर्बाद करने में बिताते रहें !

     अब आप यह देखिए कि ये सुझाव तो मैं आज दे रहा हूँ पर अपने देश में ऐसे सूझ-बूझ वाले कई लोग हैं जो इनमे से अपने आप कई सुझावों पर बहुत पहले से ही अमल करते आ रहे हैं !
     

       

10 comments:

  1. very true !....but the unfortunate thing is that only negligible people are there to grasp the beauty of this satire which is in fact a serious note...by-the-way an interesting article...& would love to share in my personal life only after having ur humble concent.

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  2. अनेक-अनेक धन्यवाद् निहारिका जी !.....आपका ब्लॉग शेयर करना मेरे लिए गर्व की बात होगी ....मैं कोई सिलेब्रिटी लेखक नहीं हूँ जिसके लिए आपको किसी पर्मीसन की दरकार हो ..बेधड़क होकर शेयर करें ..आपका आभार !

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  3. thnx...& for me in literature there are no any such celebs, anyone having the ability to pierce into the grey matter with his/her appropriate use of words are always revered.

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  4. must say ur style of projecting the things is simply fabulous ....in fact u r among those writers who titillates people on a social issue of great concern...u r very right when u say that the indiscipline is taken for granted by referring the so-called "BINDAAS" modern trend...m too gonna share this.

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  5. ‎Kaveri ji ! m overwhelmed as usual & thanking God for getting such a high quality boost-up from the skilled professionals like u..& it'll be an honor to me when u share my blog.

    Niharika ji ! i respect ur views.

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  6. do not have words to praise the grace of the matter & at the same time emerges a feeling to curse the subversive trend among the youths of this century...well done.

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  7. thanks a lot Avantika Ji ! ...it always feels good when the work is complimented....hope the connection will b kept connected in future also.

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  8. yar bhai apne to sabkuch khol kar rakh diya hai .........apke vichar logon ke andar palte to hain lekin durbhagya hai utni hi jaldi mit bhi jate hain.....kash in vicharon ki koi aisi andhi chale jo hamare khokhle aur be buniyadi vicharon ko uda kar ek saf suthri jivan shaili ki jagah hamare man me bana sake .......

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  9. बेहतरीन लेखन शैली ..आलोचकों के एलीट वर्ग से कुछ कमतर नहीं ...सुखद अनुभूति हुई आपका लेख कम व्यंग्य पढ़कर...लिखते रहिएगा ..हिंदी का रूदन शायद हंसी के कहकहों में बदल सके ..हिंगलिश के इस दौर में हिंदी का ये लेख छितिज़ की उस रौशनी के मानिंद है जो अब नज़दीक आती दीख रही है ...वैसे ! इस फील्ड में पैसा नहीं है शुक्ल जी !

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  10. रवीश जी ! मुझे अभी भी यकीन नहीं हो रहा कि मेरे (एक मामूली शख्श) के ब्लॉग पे उन रवीश कुमार का कमेन्ट है जिन्हें मैं अक्सर एन.डी.टी.वी. इंडिया पर चर्चा करते हुए देखता हूँ ...आपका कमेन्ट मेरे लिए हलाहल का विलोम है ...शुक्रिया कहना काफी कमज़ोर लग रहा है ..आपने पैसे कि बात क्यों लिखी ये मेरे लिए एक पहेली है, अगर आप एक्सप्लेन कर दें तो आपका आभार होगा !

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