Tuesday, August 27, 2013

बिउटीफुल, स्लिम लड़की के लिए .......

रविवार को अख़बार की सारी खबरें पढ़ चुका था तभी नज़र मैट्रीमोनियल पर पड़ी :  

स्मार्ट, हैण्डसम, जाट लड़का, एम. बी. ए . हेतु बिउटीफुल, स्लिम प्रोफेशनल वधु चाहिए। टाल, हैण्डसम, बिजनेसमैन, कैनेडा सेटल्ड सिक्ख लड़का हेतु वेल क्वालीफाईड, अतिसुन्दर, गोरी लड़की चाहिए ।
मैथिल हैंडसम लड़का,बैंक पी. ओ.,पिता अधिकारी,हेतु सुशिक्षित बधू चाहिए। स्मार्ट ब्राह्मण लड़का,आईआईटी,हेतु सुंदर प्रोफे.,नन प्रोफे.वधू चाहिए। श्रीवास्तव,मंगला,एमबीए,पिता राजपत्रित अधिकारी,हेतु लड़की लंबी,गोरी,सुन्दर और सुशिक्षित चाहिए। स्मार्ट, बिहार सरकार में कार्यरत लड़का हेतु घरेलु लम्बी सुन्दर वधू चाहिए। बिउटीफुल, स्लिम, नवाज़ी शेख लड़की के लिए आईटी, सरकारी अफसर,वर चाहिए। अतिसुंदर भूमिहार लड़की बीटेक एमबीए हेतु बीटेक वर चाहिए। कुर्मी अतिसुंदर दुधिया गोरी कॉन्वेटेड ग्रेजुएट हेतु वेलसेटल्ड वर चाहिए।

लड़का और लड़की की खूबियों के बीच एक किस्म की प्रतियोगिता मची है। इन्हीं दावेदारियों की अभिव्यक्ति में समाज का चेहरा दिखने लगता है।


इन विज्ञापनों के लड़के हैंडसम और स्मार्ट हैं। तो लड़कियां गोरी,सुन्दर और अतिसुंदर दूधिया गोरी हैं। सुन्दर लड़की और अतिसुन्दर लड़की में फर्क नज़र आता है। बात लंबाई और रंग से आगे बढ़ चुकी है। लड़की अपनी खूबी बताने के साथ साथ पसंद भी बता रही है। जैसे अति सुंदर भूमिहार लड़की खुद भी बीटेक और एमबीए है और उसे लड़का भी इसे प्रोफेशन का चाहिए। साफ है इन विज्ञापनों से झलकता है कि मां बाप अपनी बेटी की पसंद को महत्व दे रहे हैं। जैसे एक विज्ञापन में कहा गया है कि अति सुन्दर राजपूत लड़की गोरी हेतु आईआटी या एमबीए वर चाहिए।

सांवले रंग की कोई कीमत नहीं है। अतिसुन्दर होने की शर्त है गोरी होना। इसलिए अतिसुन्दर लड़कियों के साथ गोरी है यह भी लिखा जाता है। कहीं कोई यह न समझ ले कि लड़की अतिसुन्दर तो है मगर सांवली तो नहीं। रंग को लेकर हमारी सोच साफ झलकती है। गोरी बधू लाने की होड़ मची है।

ऐसे में लड़के खुद को हैंडसम और स्मार्ट कह कर दूसरे लड़कों से अलग कर रहे हैं। क्योंकि कुर्मी एमबीए लड़की अतिसुन्दर और गोरी है। उसे स्मार्ट वर चाहिए। अब लगता है कि शादियां उन्हीं के बीच हो रही हैं जो नौकरी के बाद अतिसुन्दर और स्मार्ट होने की कसौटी पर खरे उतरते हैं। अतिसुन्दर होने की दावेदारी और पाने की ख्वाहिश हर जाति तबके में हैं। बढ़ई अतिसुन्दर बिहार में कार्यरत हेतु वर चाहिए। अतिसुन्दर फूलमाली लड़की हेतु एमबीए वर चाहिए।


लड़कों के विज्ञापन में एकलौता पर भी ज़ोर है। इकलौते बेटे का बाप अलग तेवर में होता है। सारी संपत्ति एक ही आदमी को ट्रांसफर होगी इसलिए उसका भाव ज़्यादा होता है। अब इन विज्ञापनों में ज़्यादातर युवक स्मार्ट हैं। लेकिन बात आगे बढ़ चुकी है। सिन्हा,अमेरिका में कार्यरत स्मार्ट,स्लीम युवक हेतु सुंदर,गोरी,शिक्षित,स्लीम वधू चाहिए। यानी अतिंसुन्दर,हैंडसम के साथ अब स्लीम होना भी नई शर्त है।

इन विज्ञापनों में नए नए शब्द जगह बना रहे हैं। वेलसेटल्ड,एजुकेटेड,प्रोफेशन का संक्षिप्त रूप प्रोफे,नन प्रोफे,कान्यकुब्ज की जगह का.कु और इंजीनियर की जगह इंजी.आदि का इस्तमाल हो रहा है। लड़के या लड़की के बाप के पास अपना मकान है, इसका भी ज़िक्र है। कमाई के अंक भी बताये जा रहे हैं। जैसे- चमार लड़का,एमए,अपना व्यवसाय,आय ५ अंकों में पिता अधिकारी रिर्टा.(रिटायर्ड का संक्षिप्त रूप)हेतु घरेलु सुन्दर लड़की चाहिए। स्थान का भी ज़िक्र है। स्वर्णकार अयोध्यावासी वर के लिए ग्रेजुएट गोरी स्लिम एवं ऊंचाई ५ फीट ५ ईंच स्वजातीय वधु चाहिए।

विज्ञापनों के व्याकरण बदल रहे हैं। हिंदी पत्रकारिता के लिंग विशेशज्ञों ने द्वारा और तथा को खत्म करने के अध्यादेश कब से जारी किये हुए हैं। लेकिन इन विज्ञापनों में हेतु मौजूद है। हेतू और हेतु दोनों रूपों में। एक गलत है और एक सही। लेकिन अर्थ एक है। वधू और वधु दोनों तरह से लिखा जाता है।

जाति बंधन से मुक्त और दहेज रहित विवाह के प्रार्थी भी नज़र आते हैं। बहुत लोग उप जातियों के बंधनों को भी तोड़ रहे हैं। सभी जैन अग्रवाल मान्य तो कभी सुन्नी लड़के के विज्ञापन में लिखा होता है कि सभी मुस्लिम मान्य। दहेज नहीं और डिमांड नहीं जैसी अभिव्यक्तियां नज़र आती हैं। सुशील और संस्कारी जैसे शब्द हैं लेकिन कम हैं।

पूरे विज्ञापनों को देखिये तो सांवले,काले,कम सुंदर,चश्मेवालों,मोटे,छोटे आदि के लिए कोई जगह नहीं है। शादी के मामले में हम रंगभेदी हैं। समझ नहीं आता कि अतिसुन्दर वाली लड़की के नीचे जो एक और कायस्थ लड़की का विज्ञापन है लेकिन उसे गोरी और अतिसुन्दर नहीं लिखा है। तो क्या कोई उस परिवार से संपर्क नहीं करेगा।

इन सारे विज्ञापनों को देने वालों में अधिकतर ऐसे हैं जिन्हें आप अक्सर रंगभेद की नीतियों के खिलाफ बोलते हुए देख सकते हैं । सवाल शादी के विज्ञापन का नहीं है, सवाल है उस सामाजिक बुराई का जो हमारे बीच पल रहा है और जिसे पालने वाले हमीं हैं । रंगभेद की नीति और उसे दूर करने के लिए नेल्सन मंडेला और उनके जैसे अन्य लोगों के योगदान को पढ़ भर लेने से ये बुराई नहीं दूर होगी । ये दूर होगी जब लड़कों को दहेज़ लाने वाली मशीन और लड़कियों को एक डेकोरेटेड बिकाऊ सामान मानना बंद होगा ।