Monday, October 8, 2012

कुछ कह नहीं पाया ...

देखो अब भी तो तुम्हे ही चाहता हूँ.....
नहीं कर पाता हूँ तुमसे अलग ...
कौन सा केमिकल बांड है पता नहीं....
जब तुम थीं तब भी अकेला ही था ..
कुछ कह नहीं पाया ...
अब भी अकेला हूँ ..
बहोत कुछ कहना चाहता हूँ ..
कहता भी हूँ ..मगर खुद से ...
घूमता रहता हूँ इस वीराने में प्रेत की तरह ...
सोचता रहता हूँ तुम्हारे बारे में ...
ऐसे ही बीत रही है ज़िन्दगी ..
ये आई तुम्हारी याद और वो सुना मैंने वही गीत ..
हाँ कभी अखबार भी पढ़ लेता हूँ ...
ये राजनीति हुई ..
वो घोटाला हुआ ...क्यूँ हुआ ?...
शायद उन्हें प्रेम करना नहीं आता ...
अब क्रिकेट देख रहा हूँ ....
मगर  सचिन नहीं खेल रहा .....
लो इन पचास प्रपंचों के बाद भी नहीं भूल पाया तुम्हें......